राजनांदगांव: छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में तना छेदक और अन्य रोगों के कारण धान की फसल बर्बाद हो रही है. तना छेदक रोग के कारण धान की बालियां सूख रही हैं और कीटों का प्रकोप बढ़ गया है. इससे किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और धान की पैदावार भी प्रभावित हो रही है. कृषि विभाग ने बचाव के लिए किसानों को विभिन्न उपाय अपनाने की सलाह दी है और कीट नियंत्रण के उपाय बताए हैं.
मौसम के बदलाव से बढ़ा कीट प्रकोप, तना छेदक से फसल को नुकसान
राजनांदगांव जिले में मौसम में लगातार बदलाव के कारण धान की फसल पर कीट प्रकोप बढ़ा है, जिससे किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लोकल 18 से बात करते हुए कृषि विभाग के सहायक संचालक, डॉक्टर बीरेंद्र अनंत ने बताया कि तना छेदक कीट धान के फसल को दो चरणों में प्रभावित करता है—मेकिंग और गाभोट स्टेज में. यह कीट धान के तने में घुसकर उसे नुकसान पहुंचाता है, जिससे बालियां अंदर से खोखली हो जाती हैं.
नियमित निरीक्षण से कीट प्रकोप की पहचान और नियंत्रण
किसानों को सतत निरीक्षण करने की सलाह दी गई है. यदि निरीक्षण में सफेद धब्बों वाले अंडे दिखें तो उन्हें काटकर या हाथ से हटा देना चाहिए. रासायनिक उपचार के लिए क्लोरपाइरीफॉस और कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड जैसी दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग तना छेदक के नियंत्रण में किया जा सकता है.
तना छेदक के कारण सूख रही धान की बालियां
तना छेदक रोग के कारण धान की बालियां सूखने लगती हैं, क्योंकि यह कीट धान की बालियों से पोषक तत्व चूस लेता है. इसके परिणामस्वरूप फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है और उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
कीट प्रकोप से बचने के उपाय और सिफारिशें
कीटनाशक और आईपीएम विधियों के तहत कृषि विभाग किसानों को सलाह दे रहा है. बाजार में कई तरह की कीटनाशक दवाएं उपलब्ध हैं, जिनके इस्तेमाल से किसान इन बीमारियों से बच सकते हैं.
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उपचार के उपाय और दवाओं के प्रयोग की जानकारी
कीट प्रकोप अधिक होने पर हाइड्रोक्लोरिक 4G, फेफ्रेनिल, क्लोरोपाइरीफोस और हाइड्रोक्लोराइट जैसी दवाओं का प्रयोग कर किसान तना छेदक और अन्य बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं. इनका छिड़काव उचित मात्रा में कर, फसल को इन रोगों से सुरक्षित रखा जा सकता है.
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FIRST PUBLISHED : November 10, 2024, 21:29 IST