Saturday, April 5, 2025
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छत्तीसगढ़ में देवी का यह मंदिर है बहुत प्राचीन, पहाड़ों पर खुले आसमान के नीचे विराजमान हैं यहां मातारानी

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Kosgai Devi Temple Korba Chhattisgarh: कोसगाई देवी मंदिर जिसका इतिहास काफी पुराना है. यह मंदिर 16वीं शताब्दी का माना जाता है. मान्यता है कि यहां जो भी भक्त मनोकामना लेकर आता है, माता उसकी मुराद पूरी करती हैं. य…और पढ़ें

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देवी मां

हाइलाइट्स

  • कोसगाई देवी मंदिर 16वीं शताब्दी का है
  • मंदिर में सफेद ध्वज चढ़ाया जाता है
  • मंदिर में भक्तों की भीड़ लगातार बढ़ रही है

कोरबा: जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर कोसगाई पहाड़ पर स्थित देवी का मंदिर, अपनी प्राचीनता और पुरातात्विक महत्व के कारण विशेष रूप से जाना जाता है. प्रकृति की गोद में बसा कोसगाई गढ़, कोरबा जिले के गौरवशाली इतिहास को दर्शाता है. पुरातात्विक दृष्टि से यह मंदिर 16वीं शताब्दी का माना जाता है और छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ों में से एक, छुरीगढ़ से इसका गहरा संबंध है. आज भी राजघराने के सदस्य यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं. इस पहाड़ पर चढ़ना जितना मुश्किल है, ऊपर पहुंचने पर उतना ही सुकून मिलता है. मान्यता है कि यहां जो भी भक्त मनोकामना लेकर आता है, माता उसकी मुराद पूरी करती हैं. यही वजह है कि मंदिर में भक्तों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है.

सफेद ध्वज का महत्व
आमतौर पर देवी मंदिरों में लाल ध्वज फहराया जाता है, लेकिन कोसगाई देवी मंदिर में सफेद ध्वज चढ़ाया जाता है. सफेद ध्वज शांति का प्रतीक माना जाता है. पहाड़ के ऊपर विराजमान मां कोसगाई देवी कुंवारी स्वरूप में विराजमान हैं, इसलिए भी माता को सफेद ध्वज अर्पित किया जाता है. माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों को माता सुख और शांति प्रदान करती हैं.

खुले आसमान के नीचे तपस्या
माता खुले आसमान के नीचे पहाड़ की चोटी पर विराजमान हैं. किंवदंती है कि राजघराने के पूर्वजों ने एक बार मंदिर पर छत बनाने की कोशिश की थी, लेकिन माता ने स्वप्न में आकर उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया.मंदिर में सेवा कार्य में जुटे मेहत्तर सिंह बताते हैं, कि वे अपने परिवार की चौथी पीढ़ी हैं, जो यहां सेवा कर रहे हैं. लोगों का मानना है कि देवी मां जग कल्याण के लिए तपस्या में लीन हैं और इसी कारण भीषण गर्मी, बारिश और ठंड को सह रही हैं.

कोष शब्द से बना कोसगाई
16वीं शताब्दी में हैहयवंशी राजा बहारेन्द्र साय ने मां कोसगाई मंदिर की स्थापना की थी. इन्हें कलचुरी राजा भी कहा जाता है. मान्यता है कि वे रतनपुर से खजाना लेकर आए थे और उसे कोसगाई में रखा गया था. इसी वजह से इस जगह का नाम कोसगाई पड़ गया. यह भी माना जाता है कि खजाने की रक्षा और क्षेत्र में शांति की स्थापना के लिए इस मंदिर की स्थापना की गई थी.

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छत्तीसगढ़ में 16 वीं शताब्दी में बना कोसगाई देवी का मंदिर, जानें इसकी मान्यता!

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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