मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल उमरिया जिले में इस वर्ष महुआ की फसल ने किसानों और ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी ला दी है। गेहूं कटाई से पहले ही महुआ के फूलों से जंगल भर गए हैं, जिससे ग्रामीण सुबह होते ही बिनाई के कार्य में जुट जाते हैं। महुआ न केवल आर्थिक रूप से सहारा देता है बल्कि इसे कई प्रकार से उपयोग में लाया जाता है, जिससे इसकी मांग बाजार में बनी रहती है। इस साल महुआ की अच्छी पैदावार होने से ग्रामीणों को उम्मीद है कि बाजार में उचित दाम मिलने से उनकी आय में वृद्धि होगी।
उमरिया की भौगोलिक संरचना को देखते हुए यहां का 60 प्रतिशत क्षेत्र जंगलों से आच्छादित है। इन जंगलों में महुआ के पेड़ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। महुआ के फूलों का उपयोग खाद्य पदार्थों के अलावा औषधीय उत्पादों और पारंपरिक शराब बनाने में भी किया जाता है। यह ग्रामीणों के लिए एक महत्वपूर्ण वनोपज है, जिससे उन्हें हर वर्ष अच्छा लाभ मिलता है। यही कारण है कि इस मौसम में ग्रामीण गेहूं कटाई के पूर्व बचे हुए समय का सदुपयोग महुआ बिनने में कर रहे हैं।
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ग्रामीण परिवारों में महुआ बिनने की प्रक्रिया एक विशेष परंपरा का रूप ले चुकी है। लोग आधी रात से ही जंगलों की ओर निकल पड़ते हैं, ताकि सुबह होते ही बिनाई का काम शुरू कर सकें। रात में पहले महुआ की तकवारी की जाती है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कहां अधिक मात्रा में महुआ गिरा हुआ है। फिर सुबह होते ही परिवार के सभी सदस्य मिलकर महुआ बीनते हैं और घर लाकर इसे धूप में सुखाते हैं। सुखाने की प्रक्रिया के बाद इसे स्थानीय व्यापारियों या मंडियों में बेचा जाता है।
आर्थिक मजबूती की उम्मीद
ग्रामीणों को महुआ के अच्छे दाम मिलने की उम्मीद है, जिससे उनकी आजीविका में सुधार होगा। महुआ बिनने का कार्य उन परिवारों के लिए भी राहत लेकर आता है, जिनके पास खेती के सीमित साधन हैं। यह आय का एक वैकल्पिक स्रोत बन जाता है। इस वर्ष महुआ की अच्छी फसल होने से लोग बाजार में इसकी बिक्री के लिए उत्साहित हैं।
महुआ संग्रहण से जुड़ी गतिविधियों से कई अन्य आर्थिक अवसर भी बनते हैं। स्थानीय स्तर पर व्यापारी इसे बड़े पैमाने पर खरीदते हैं और प्रोसेसिंग के लिए विभिन्न कंपनियों तक पहुंचाते हैं। इसके अलावा, कुछ ग्रामीण इसे खुद भी प्रोसेस कर महुआ लड्डू, पाउडर या अन्य खाद्य पदार्थ बनाकर बेचते हैं।
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महुआ की बढ़ती मांग
देशभर में महुआ की मांग लगातार बढ़ रही है। खाद्य उद्योग और आयुर्वेदिक कंपनियां महुआ से बने उत्पादों में रुचि ले रही हैं, जिससे इसके दामों में भी वृद्धि हो रही है। सरकारी योजनाओं के तहत वनोपज संग्रहण को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे महुआ संग्राहकों को सीधा लाभ हो सके।
इस साल उमरिया जिले में महुआ की अच्छी पैदावार से ग्रामीणों की मेहनत रंग लाने की उम्मीद है। यदि बाजार में उचित मूल्य मिलता है, तो यह जंगलों पर निर्भर रहने वाले समुदायों के लिए एक बड़ी आर्थिक संजीवनी साबित हो सकता है।