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Rare Art: शिल्पकारों का कहना है कि उनके बनाए गए उत्पादों का उचित मूल्य और बाजार नहीं मिल रहा. शिल्पकार धनीराम झारा बताते हैं कि उनकी कलाकृतियां बिचौलियों के माध्यम से बेची जाती हैं, जिससे उन्हें बहुत कम लाभ मिल…और पढ़ें
छत्तीसगढ़ का ढोकरा कला, अब शिल्पकारों की कला विलुप्ति की कगार पर.
हाइलाइट्स
- उचित मूल्य और बाजार से वंचित हैं ढोकरा कला के शिल्पकार
- दिहाड़ी मजदूरी या पलायन करने को मजबूर हैं कई शिल्पकार
- सरकारी उपेक्षा और आर्थिक तंगी से संकट में है कला
रायगढ़: ढोकरा कला भारत की प्राचीनतम धातु शिल्प कलाओं में से एक है, जिसकी जड़ें 4600 साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता तक जाती हैं. यह कला अपनी बारीकी, पारंपरिक डिज़ाइन और कलात्मक उत्कृष्टता के लिए जानी जाती है. छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के ग्राम एकताल में बसे झारा शिल्पकार इस विरासत को संजोने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आज यह कला और इसके कलाकार संकट में हैं.
संघर्ष में जी रहे हैं राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित शिल्पकार
ग्राम एकताल में लगभग 100 झारा शिल्पकार ढोकरा कला में निपुण हैं. इनमें से कई कलाकार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं. 80 वर्षीय गोविंद राम झारा ने छत्तीसगढ़ की कर्मा माता की मूर्ति बनाई थी, जिसके लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा सम्मानित किया गया था. उन्हें 1984-85 में ‘शिखर सम्मान’, दाऊ मंदराजी राज्य अलंकरण, और शिल्प गुरु सम्मान से भी नवाजा गया था. लेकिन आज वे और उनके साथी शिल्पकार अपनी पुश्तैनी कला को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
आर्थिक तंगी और सरकारी उपेक्षा बनी बाधा
शिल्पकारों का कहना है कि उनके बनाए गए उत्पादों का उचित मूल्य और बाजार नहीं मिल रहा. शिल्पकार धनीराम झारा बताते हैं कि उनकी कलाकृतियां बिचौलियों के माध्यम से बेची जाती हैं, जिससे उन्हें बहुत कम लाभ मिलता है. इसी कारण कई शिल्पकार दिहाड़ी मजदूरी या पलायन करने के लिए मजबूर हो गए हैं. शिल्पकार महिला पिंकी झारा ने बताया कि सरकार से कोई ठोस सहयोग नहीं मिल रहा, जिससे युवा पीढ़ी इस कला को छोड़कर अन्य कामों की ओर बढ़ रही है.
संरक्षण के लिए उठाए जाने वाले आवश्यक कदम
• आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण कार्यक्रम – शिल्पकारों को वित्तीय सहायता दी जाए और नई तकनीकों से प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे आधुनिक डिजाइनों के अनुरूप काम कर सकें.
• स्थायी बाजार और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म – ढोकरा कला के उत्पादों के लिए एक स्थायी बाज़ार बनाया जाए और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से इन्हें अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंचाया जाए.
• बिचौलियों की भूमिका कम करना – शिल्पकारों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ने के लिए सरकारी और निजी स्तर पर पहल होनी चाहिए.
• सरकार की योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन – राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं को शिल्पकारों तक सही तरीके से पहुंचाया जाए.
संस्कृति और शिल्पकारों का भविष्य दांव पर
ढोकरा कला केवल एक शिल्प नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है. इसे संरक्षित करना न केवल हमारे इतिहास और परंपरा को जीवित रखने का कार्य है, बल्कि उन शिल्पकारों के जीवन को भी बेहतर बनाने का माध्यम है, जिन्होंने इसे पीढ़ियों तक संजोकर रखा है. अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार और प्रशासन इस प्राचीन कला को पुनर्जीवित करने के लिए क्या कदम उठाते हैं. यदि समय रहते उचित प्रयास नहीं किए गए, तो यह ऐतिहासिक धरोहर धीरे-धीरे विलुप्त हो सकती है.