Thursday, March 13, 2025
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रायपुर में गुंजने लगी डोंगरगढ़ के नगाड़ों की थाप, बाजारों में होली की रौनक

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Holi 2025: छत्तीसगढ़ में होली और नगाड़े का गहरा संबंध है. यहां की होली सिर्फ रंगों से नहीं बल्कि फाग गीतों और नगाड़े की थाप से भी जीवंत होती है. नगाड़े की आवाज सुनकर लोगों में उमंग और जोश आ जाता है। गांवों में …और पढ़ें

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नगाड़ा दुकान

रायपुरः- होली का त्योहार छत्तीसगढ़ में सिर्फ रंगों और गुलाल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह यहां की समृद्ध लोकसंस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक है. इन्हीं परंपराओं में से एक है नगाड़े की गूंज, जो होली के दौरान पूरे राज्य में सुनाई देती है. वर्षों से नगाड़े बजाने और बेचने की यह परंपरा चली आ रही है, जो धीरे-धीरे आधुनिकता के चलते कुछ फीकी पड़ती जा रही है, लेकिन फिर भी इसे जीवंत रखने वाले लोग आज भी अपने व्यवसाय और शौक के जरिए इसे संजोए हुए हैं.

डोंगरगढ़ के रहने वाले अशोक कुमार पिछले 40 वर्षों से नगाड़े का व्यवसाय कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि हर साल होली के मौके पर वे रायपुर नगाड़े बेचने आते हैं. पहले वे 22 वर्षों तक प्रभात टॉकीज, राठौर चौक में दुकान लगाते थे, लेकिन जगह की कमी के कारण बीते 18 वर्षों से कालीबाड़ी चौक में अपनी दुकान सजाते हैं. हर साल वे एक पूरा ट्रक नगाड़े लेकर रायपुर आते हैं, जिसमें 100 रुपए से 3000 रुपए तक के नगाड़े होते हैं. इनकी कीमत इनके आकार और क्वालिटी के अनुसार तय की जाती है. अशोक कुमार के अनुसार, राजधानी रायपुर में हर साइज के नगाड़ों की मांग बनी रहती है, और खासकर होली के दस दिन पहले से इनकी बिक्री शुरू हो जाती है. नगाड़ों के शौकीन और पारंपरिक होली खेलने वाले लोग बेसब्री से नगाड़ों की दुकानें सजने का इंतजार करते हैं.

परंपरा अब धीरे-धीरे लुप्त हो रही
अशोक कुमार ने यह भी बताया कि पहले बसंत पंचमी से ही चौक-चौराहों पर नगाड़ों की गूंज सुनाई देने लगती थी. लोग अपने-अपने मोहल्लों में नगाड़े बजाकर होली के आगमन का संदेश फैलाते थे. लेकिन आधुनिकता और बदलते समय के कारण यह परंपरा अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है. आज के समय में सिर्फ होली के कुछ दिनों पहले ही नगाड़ों की आवाज सुनाई देती है. नगाड़ा बनाने के लिए चमड़ा, हड्डी और लकड़ी की आवश्यकता होती है, जिन्हें अलग-अलग स्थानों से खरीदा जाता है. अशोक कुमार ने बताया कि नगाड़ा व्यवसाय में उन्हें 1 से 1.5 लाख रुपए तक की लागत आती है और इसे तैयार करने का काम बसंत पंचमी से लेकर महाशिवरात्रि तक चलता है. उसके बाद वे इन्हें बेचने के लिए निकलते हैं.

गायन के दौरान नगाड़े का विशेष महत्व
छत्तीसगढ़ में होली और नगाड़े का गहरा संबंध है. यहां की होली सिर्फ रंगों से नहीं बल्कि फाग गीतों और नगाड़े की थाप से भी जीवंत होती है. नगाड़े की आवाज सुनकर लोगों में उमंग और जोश आ जाता है। गांवों में फाग गायन के दौरान नगाड़े का विशेष महत्व होता है, जहां लोग एकजुट होकर होली के पारंपरिक गीत गाते हैं और नगाड़े की थाप पर थिरकते हैं. बदलते समय के साथ नगाड़ों का प्रचलन थोड़ा कम हुआ है, लेकिन अशोक कुमार जैसे पारंपरिक व्यवसायी और लोक कलाकार इसे जीवंत बनाए हुए हैं. नगाड़े की यह गूंज सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकसंस्कृति का प्रतीक भी है, जिसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना आवश्यक है.

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