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अम्बिकापुर की “राधे कृष्णा स्वयं सहायता समूह” की महिलाएं हर्बल गुलाल बनाकर आत्मनिर्भर हो रही हैं. पिछले साल 10 क्विंटल गुलाल बेचकर 1.54 लाख कमाए, इस साल 20 क्विंटल का लक्ष्य.
हर्बल गुलाल
हाइलाइट्स
- अम्बिकापुर की महिलाएं हर्बल गुलाल से आत्मनिर्भर हो रही हैं.
- पिछले साल 10 क्विंटल गुलाल बेचकर 1.54 लाख कमाए.
- इस साल 20 क्विंटल हर्बल गुलाल बेचने का लक्ष्य.
रमजान खान/अम्बिकापुर. छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इसी कड़ी में अम्बिकापुर ब्लॉक के ग्राम पंचायत डिगमा की “राधे कृष्णा स्वयं सहायता समूह” की महिलाएं पिछले चार साल से हर्बल गुलाल बना रही हैं. इन महिलाओं का यह प्रयास न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सुधार रहा है, बल्कि लोगों को रासायनिक मुक्त और प्राकृतिक रंगों से सुरक्षित होली मनाने का मौका भी दे रहा है.
प्राकृतिक रंगों से बनता है हर्बल गुलाल
स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने बताया कि वे हर्बल गुलाल बनाने के लिए फल-फूल, चुकंदर, गेंदे का फूल, सेमी पत्तियां, लहसुन और पलाश के फूलों का उपयोग करती हैं. इससे गुलाल पूरी तरह प्राकृतिक और त्वचा के लिए सुरक्षित होता है. समूह की महिलाएं न केवल इस व्यवसाय से आय कमा रही हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अपना योगदान दे रही हैं.
20 क्विंटल बिक्री का लक्ष्य
पिछले साल स्वयं सहायता महिला समूह ने 10 क्विंटल हर्बल गुलाल बेचा था, जिससे उन्हें 1 लाख 54 हजार रुपए की अच्छी आमदनी हुई थी. इस साल 20 क्विंटल हर्बल गुलाल बेचने का लक्ष्य रखा है.
प्राकृतिक होली मनाएं
कलेक्ट्रेट कंपोजिट बिल्डिंग में महिला समूह की ओर से हर्बल गुलाल का स्टॉल लगाया गया, यहां कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों ने भी होली के लिए हर्बल गुलाल खरीदा. जिला पंचायत सीईओ ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए जा रहे हैं. आज महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं. उन्होंने सभी नागरिकों से अपील की है कि वे स्वयं सहायता समूह द्वारा बनाए गए हर्बल गुलाल का उपयोग कर सुरक्षित और प्राकृतिक होली मनाएं और रासायनिक रंगों से बचें.
होली के सीजन में अच्छी इनकम
महिलाओं ने बताया कि वे फूलों और पत्तियों के रस को इकट्ठा करते हैं. इसके लिए वे साल भर मेहनत करती हैं. फूलों और पत्तियों के अलग-अलग वैरायटी के देशी फल-फूल का रस निकालकर पहले सुखाते हैं, फिर अलग-अलग रंग का गुलाल तैयार करते हैं. इसे बनाने में एक महीने का वक्त लगता है, लेकिन होली के सीजन में अच्छी खासी इनकम हो जाती है, जिससे उनका घर-परिवार बेहतर जीवन जी सकता है. यानी महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन रही हैं.
Ambikapur,Surguja,Chhattisgarh
March 12, 2025, 10:27 IST