Wednesday, January 8, 2025
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वाह…क्या देशभक्ति है! अमेरिका में 24 लाख की नौकरी को ठुकराया, अब ये शख्स फूलों की खेती से कमा रहा लाखों

बिलासपुर:- जब अधिकांश लोग विदेश में नौकरी और चमक-धमक भरी आरामदायक जिंदगी के सपने देखते हैं, वहां छत्तीसगढ़ के शुभम दीक्षित ने अपने गांव लौटकर कुछ अलग करने की ठानी. अमेरिका में शानदार पैकेज पर नौकरी छोड़कर उन्होंने अपनी जमीन पर फूलों की खेती शुरू की. उनका यह कदम न केवल पर्यावरण को बचाने की दिशा में एक प्रयास है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अपनी मिट्टी से जुड़कर बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं.

अमेरिका छोड़कर गांव लौटे शुभम
शुभम दीक्षित, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रहने वाले हैं. इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अमेरिका में एक बड़ी कंपनी में काम किया. लेकिन कोविड-19 के दौरान जब वर्क फ्रॉम होम चल रहा था, तब शुभम ने अपनी मिट्टी से जुड़ने और खेती करने का फैसला लिया. वे तखतपुर रोड पर बिनौरी गांव में अपने खेत में फूलों की खेती कर रहे हैं. शुभम ने खेती की शुरुआत केले के पौधों से की, लेकिन इसमें नुकसान हुआ. फिर उन्होंने फूलों की खेती करने की सोची. आज शुभम रजनीगंधा, जरबेरा, ग्लेडियस और सेवंती जैसे फूल उगा रहे हैं. उन्होंने पॉलीहाउस तकनीक का इस्तेमाल किया, जिससे फूलों की अच्छी गुणवत्ता और बेहतर उत्पादन होने लगा.

कैसे बढ़ी कमाई?
शुभम ने अपनी 14 एकड़ जमीन में से 5 एकड़ में फूलों की खेती शुरू की. इससे शुभम हर महीने 2 लाख से ढाई लाख रुपए तक कमा रहे हैं. उनकी सालाना कमाई 24 लाख से 26 लाख रुपये तक पहुंच गई है, जो उनकी पुरानी नौकरी के बराबर है. साथ ही वे 8 लोगों को रोजगार देकर आर्थिक रूप से मजबूत बना रहे हैं. उनके बाग में रजनीगंधा के 70,000 पौधों से हर महीने 80,000 स्टिक का उत्पादन होता है, जो बाजार में 5-6 रुपए प्रति स्टिक के भाव से बिकता है. वहीं जरबेरा 26,000 पौधों से रोजाना 500 स्टिक निकलती हैं, जिनकी कीमत 5-10 रुपये प्रति स्टिक है.

सरकार की मदद से आसान हुआ सफर
शुभम ने अपनी खेती पर करीब 60 लाख रुपये का खर्च किया. इसमें से आधी रकम उन्हें सरकार की सब्सिडी से मिली और बाकी पैसा बैंक लोन से जुटाया. शुभम का मानना है कि खेती में नई तकनीकों और सही प्लानिंग से हर किसान बेहतर कमाई कर सकता है. शुभम का कहना है कि प्लास्टिक के फूल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. उन्होंने प्राकृतिक फूलों की खेती को बढ़ावा देकर न सिर्फ पर्यावरण बचाने में मदद की, बल्कि स्थानीय बाजार को भी मजबूत किया है. वे आगे भी पर्यावरण की दिशा में काम करते रहेंगे.

युवाओं और किसानों के लिए प्रेरणा
शुभम की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो गांव छोड़कर शहरों में बसने का सोचते हैं. उन्होंने दिखा दिया कि गांव में रहकर भी बड़े काम किए जा सकते हैं. शुभम की मेहनत और नए तरीके से खेती करने का जज्बा आज कई युवाओं और किसानों को नई राह दिखा रहा है.

Tags: Agriculture, Bilaspur news, Chhattisgarh news, Local18

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