कोरबा :- भारत देश में आज भी कई ऐसे गांव हैं जहां आज भी लोग पुरानी परंपराओं के अनुसार ही काम करते आ रहे हैं या अपनी संस्कृति को मजबूत करने में लगे हैं. ऐसे में कोयला, एल्यूमिनियम और बिजली का उत्पादन करने वाले जिले कोरबा में ग्रामीण जीवन अभी भी अपनी परंपरा और संस्कृति की जड़ों को मजबूत करने में लगा हुआ है.
पुराने समय से ही सुआ नृत्य जैसे कार्यक्रम वहां के सुनहरे इतिहास को समेटे हुए हैं. आपको बता दें कि धान की कटाई और मिंजाई के बाद लोगों के पास पर्याप्त समय होता था अपना कौशल दिखाने को, जिनमें सुआ नृत्य भी शामिल है. सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. आकर्षक वेशभूषा और ग्रामीण अलंकार को समाहित महिलाओं का समूह एक टोकरी में सुरक्षित रूप से सुआ यानी तोते को रखे हुए होता है और उसके जरिए से ही महिलाएं अपनी बात ईश्वर तक पहुंचाती हैं. उनका नृत्य इसी पर आधारित है.
पूर्वजों के समय से बनी है परंपरा
बड़गांव में महिला समूह का नेतृत्व करने वाली महिला ने बताया, कि पूर्वजों के समय से इस प्रकार की परंपरा बनी हुई है, और वह उनका निर्वहन करने में लगी हैं. सुआ नृत्य उनकी संस्कृति, परंपरा के साथ अपने मनोभाव को ईश्वर तक पहुंचाने का एक माध्यम है.
क्या है इसकी मान्यता
प्राचीन मान्यता है, कि सुआ गीत नृत्य करने महिलाएं जब गांव में किसानों के घर-घर जाती थीं, तब उन्हें उस नृत्य के उपहार के रूप में पैसे या अनाज दिया जाता था. इसका उपयोग वे गौरा-गौरी के विवाह उत्सव में करती थीं. किसानों के खेतों में से धान की फसल कट जाने के बाद इसकी खुशी में घर-घर जाकर युवतियां यह नृत्य किया करती थीं, और उपहार स्वरूप उन्हें नया अनाज दिया जाता था.
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FIRST PUBLISHED : December 25, 2024, 16:44 IST
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