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New Delhi : पर्यावरणविद् और पद्मश्री व पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि मौसम चक्र बुरी तरह से प्रभावित हो चुका है। पश्चिमी देशों के लापरवाह दृष्टिकोण ने पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई को बौना और लंगड़ा कर दिया है। पर्यावरण संरक्षण की चिंता किसी के दिमाग में नहीं है और लोग इसके लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं। अभी जीडीपी की नहीं जीईपी की जरूरत है। अगर समय रहते नहीं चेते तो इसके भयावह दुष्परिणााम सामने होंगे।
जंगल को लेकर सरकारी दावे खोखले
तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय में आयोजित लीडरशिप टॉक सीरीज के दौरान उन्होंने कहा कि हमें चंद्रमा और मंगल को जानने की जिज्ञासा तो है, लेकिन धरती को पूरी तरह से समझना ही नहीं चाहते हैं। हरित क्रांति और श्वेत क्रांति की देन का श्रेय हिमालय को है। हमारे पास प्राकृतिक जंगल सिर्फ 14 प्रतिशत ही बचे हैं। हालांकि सरकारी दावे 23 प्रतिशत के हैं, जो खोखले हैं। पूरी दुनिया में मात्र 31 प्रतिशत पेड़ बचे हैं, यह गहन चिंता का विषय है। भारत का आंकड़ा और चौंकाने वाला है। देश में प्रति व्यक्ति पर प्रति पेड़ का औसत भी नहीं है।
देहरादून बना जीईपी देने वाला विश्व का पहला शहर
यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट के अनुसार भयावह पर्यावरण प्रदूषण और दूषित भोजन के चलते प्रत्येक मनुष्य के शरीर में माइक्रोप्लास्टिक घुस चुका है। देहरादून ग्रॉस इन्वायरमेंटल प्रोडक्ट (जीईपी) देने वाला विश्व का पहला शहर है। जीईपी में जंगल की क्वालिटी, पानी का संरक्षण, वायु की गुणवत्ता और मिट्टी जैविकीकरण को बढ़ाना शामिल है।
यूपी बन सकता है जीईपी देने वाला दूसरा राज्य
जीईपी देने वाले उत्तराखंड को लेकर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बातचीत हुई है। जंगल, नदी व पानी को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गंभीर हैं। सकल पर्यावरण उत्पाद को देने के लिए यूपी ने पिछले पांच-सात सालों में प्रकृति के लिए क्या-क्या कार्य किया, इसके वे आंकड़े के रूप में दे रहे हैं। जीईपी देने वाला दूसरा राज्य यूपी हो सकता है। जीईपी ये बताएगा कि हमनें जंगल, पानी व हवा के लिए क्या किया, इसकी जानकारी मिल जाएगी। जीईपी में चार मुख्य अंग हैं। जंगल कितना बढ़ाया, कितना पानी वर्षा का रोका, कितनी मिट्टी को आर्गेनिक किया और हवा कितनी स्वच्छ की, इसको मिलाकर सकल पर्यावरण उत्पाद बनता है।
डा, जुर्माना और कड़े नियमों से होगा सुधार
पर्यावरण को लेकर संस्थानों से लेकर समाज के प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी तय करनी होगी। जब तक डर नहीं होगा, बड़ा जुर्माना नहीं लगाया जाएगा और कड़े नियम नहीं बनाए जाएंगे, तब तक स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। कड़े नियम और बड़े फाइन के कारण लोग मेट्रो में थूक नहीं सकते और बाहर निकलते ही कुछ भी करते हैं। जैसे मेट्रो में लोगों को सीधे रास्ते पर ला दिया है, वैसे ही सभी स्थानों पर पर्यावरण को बचाने के लिए डर के साथ बड़ा जुर्माना और कड़े नियम बेहद जरूरी हैं।
समुद्र का 40 प्रतिशत हिस्सा हो चुका है खराब
डॉ. अनिल जोशी ने कहा कि पर्यावरण के बिगड़ने का असर मौसम में आ रहे बदलाव के तौर पर साफ देखा जा सकता है। गर्मी सारी सीमाएं तोड़ रही हैं। मानसून का कुछ पता ही नहीं चलता, कब औश्र कहां कितनी बारिश हो जाएगी, कोई अंदाजा नहीं रहा है। समुद्र का तापमान 0.4 प्रतिशत बढ़ गया है। एक मिलियन समुद्री जीव खत्म हो गए। इससे भी भयावह स्थिति यह है कि आज भी पांच ट्रिलियन प्लास्टिक समुंद्र में तैर रहा है। इस कारण समुद्र का 40 प्रतिशत हिस्सा खराब हो चुका है।
जैविक खेती को होगा अपनाना
डॉ. जोशी ने कहा कि जैसे हमारी धमनियों में खून है, वैसे ही जीवन के लिए मां गंगा हैं। हम सभी के और सामूहिक व संगठित प्रयास से ही मां गंगा को बचाया जा सकता है। केमिकल खेती का मोह अब छोड़ना ही होगा और जैविक खेती को अपनाना होगा। प्रकृति हमें हवा, पानी देती है, उसके बदले हम से कुछ नहीं लेती, लेकिन प्रकृति के इस कर्ज को चुकाने के बजाय हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के साथ ही प्रकृति के संरक्षण से दूर जा रहे हैं। अब समय आ गया है कि हमें प्रकृति के संरक्षण के लिए गंभीर होना होगा और व्यक्तिगत के साथ ही सामूहिक प्रयास भी करने होंगे।