Wednesday, January 22, 2025
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सबसे अलग होता है छत्तीसगढ़ का दीपावली त्यौहार, गाय का जूठा प्रसाद के रूप में करते हैं ग्रहण

रायपुर : छत्तीसगढ़ में दशहरा खत्म होते ही लोग दीवाली की तैयारी में जुट जाते हैं. घरों में साफ सफाई की तैयारी शुरू हो जाती है. घरों के रंग रोगन के साथ पुताई का काम भी होता है और इन्हीं कामों को पूरा करते हुए दीवाली की शुरुआत धनतेरस से हो चुकी है. दीवाली हर वर्ग के लोगों को खूब पसंद आता है. जब भी दीवाली की बात होती है तब छत्तीसगढ़ की प्रथा परंपरा और संस्कृति की जिक्र जरुर होता है.

दरअसल, छत्तीसगढ़ अपनी कला संस्कृति और प्रथा परंपरा की वजह से पूरे देश में अलग पहचान रखता है. यहां दीवाली को देवारी कहा जाता है. गोवर्धन पूजा के दिन गौवंश की पूजा कर उनका जूठा प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.

राजधानी रायपुर के पंडित मनोज शुक्ला का कहना है कि छत्तीसगढ़ की दिवाली अन्य राज्यों प्रदेशों से इसलिए अलग है कि इसको हम  ‘देवारी’ त्योहार के नाम से जानते हैं मनाते हैं.  छत्तीसगढ़ की प्रथा परंपरा बहुत ही मधुर और अनजान व्यक्ति को भी प्रभावित कर लेने वाला होता है. छत्तीसगढ़ी में ‘मया’ शब्द से संबोधित करते हैं.

दीवाली का जो पर्व है उसकी प्रथा परंपरा के अनुसार दीपों की कतार को ‘सुरहोती’ कहा जाता है.  सुरहोती में सुर का तात्पर्य देवता से है और उनके लिए जो दीपक जलाई जाती है उसे सुरहोती कहते हैं.  छत्तीसगढ़ में चतुर्दशी तिथि रूप चतुर्दशी के नाम से मनाई जाती है और इस दिन 10 प्रकार के औषधीय को अपने शरीर में उबटन लगाकर स्नान किया जाता है.

ग्रामीण क्षेत्रों में दिवाली के दिन विशेष दीपदान करके बहुत से लोग अपने घर में पूजन करते हैं. उसके बाद ग्रामीण क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार होता है गोवर्धन पूजा. इस दिन लोग अपने घर के गौधन को स्नान करवा करके उनके लिए खिचड़ी बनाकर वह खिचड़ी उनको खिलाई जाती है. गोधन कि उनकी पूजा की जाती है और इस खिचड़ी को प्रसाद स्वरूप घर के सारे लोग ग्रहण भी करते हैं.

यह हमारे छत्तीसगढ़ की सबसे विशेष प्रथम परंपरा है कि गौ माता को जो खिचड़ी खिलाई जाती है उसी की कुछ हिस्सा प्रसाद स्वरूप में निकाल करके उसको घर वाले भोजन करते हैं. इसके अलावा हमारे छत्तीसगढ़ की विशेष प्रथा परंपरा में सुआ नृत्य है जो दीपावली पर्व आने के कुछ दिन पहले से शुरू हो जाती है.यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोकगीत है. इस नृत्य में महिलाएं और कन्याएं गोल घेरा बनाकर बीच में सुआ यानी तोता की मूर्ति को रखकर नृत्य करती हैं.

Tags: Chhattisgarh news, Local18

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