रामकुमार नायक, रायपुर:- छत्तीसगढ़ प्रदेश प्राचीन काल में दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था. इतिहास पुरातत्व और संस्कृति का त्रिवेदी संगम यहां के स्मारकों में आज भी मौजूद है. पुरानी परंपराओं के साथ ही यहां की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत भी अनूठी है, जिसके कारण भारतवर्ष में छत्तीसगढ़ की अलग पहचान है. आज हम आपको ऐसी ही एक विरासत के बारे में बताने वाले हैं, जहां की मान्यता बेहद रोचक है. हम बिलासपुर से लगभग 12 किमी दूर सिंगारपुर की देवी मावली माता मंदिर की बात कर रहे हैं. इस मंदिर के दर्शन और माता पूजन के लिए राज्य या देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं.
विदेशों के लोग भी जला रहे ज्योति कलश
मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर में आज भी दाऊ कल्याण सिंह पहला जोत जलाते हैं. इस मंदिर में छत्तीसगढ़ राज्य, देश ही नहीं आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका के लोग भी आजीवन ज्योति कलश जला रहे हैं. पहले यहां कोई ट्रस्ट नहीं थी, लेकिन अभी मंदिर के रखरखाव व देखभाल को देखते हुए ट्रस्ट का निर्माण किया गया. मंदिर की सजावट निरंतर की जाती है. भव्य माता के मंदिर में सबसे ध्यान देने योग्य बात यह है कि मंदिर के हर कोने पर कारीगरी और सजावट की गई है, लेकिन मंदिर के गर्भगृह से किसी भी प्रकार की छेड़खानी नहीं की गई है.
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इतने साल पुराना है ये मंदिर
छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के पुरातत्त्ववेत्ता प्रभात कुमार सिंह ने लोकल 18 को बताया कि यह मंदिर लगभग 400 वर्ष पुराना है. प्राचीन काल से ही इस मंदिर की परंपरा रही कि इस मंदिर की पूजा गोड़ राजा ही सर्वप्रथम करते थे. आज भी यही परंपरा चली आ रही है. गोड़राजाओं के वंशज ही सर्वप्रथम देवी पूजा करते हैं. बताया जाता है कि गोंड़जाति से संबंधित वीरू नाम का बैगा मावली माता की पूजा-अर्चना करता था. वीरू के बाद गुलाल, रगान, फिर गोपाल पीढ़ी दर पीढ़ी पूजन का कार्य करते आ रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 7, 2024, 09:35 IST