Monday, September 16, 2024
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धान की फसल में सुरका रोग का कहर, किसानों की बढ़ी चिंता, कृषि अधिकारी से जानिए उपाय

केशव कुमार/ महासमुंद: धान की फसलों में जैसे-जैसे दाने बनने शुरू होते हैं, वैसे-वैसे किसानों की समस्याएं भी बढ़ने लगती हैं. इस समय धान की फसल में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का प्रकोप देखा जा रहा है, जिनमें सबसे खतरनाक “सुरका रोग” है. यह रोग बेहद हानिकारक होता है और खेतों में लगे धान के पौधों को बीच से खत्म कर देता है. धान की फसल खड़ी-खड़ी ही सूखने लगती है और पौधों में लगे दाने पक नहीं पाते. धीरे-धीरे यह बीमारी पूरे खेत में फैल जाती है, जिससे किसानों की पैदावार पर भारी असर पड़ता है.

सुरका रोग के लक्षण और प्रभाव
कृषि विस्तार अधिकारी अजगल्ले (बसना) ने बताया कि सुरका रोग के प्रकोप से धान की फसल में मौजूद दानों से रस निकलने लगता है, जिससे दानों पर पीले धब्बे नजर आते हैं. दाने भूरे हो जाते हैं, और उनके पुष्प गुच्छ सीधे खड़े हो जाते हैं. इस रोग के कारण दानों में छेद और काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं. भारी संक्रमण के दौरान पूरी बाल ही अनाज से रहित हो जाती है, और दानों में से दुर्गंध आने लगती है. साथ ही, कीड़ों से भी बदबू आने लगती है.

अधिकारी के अनुसार, सुरका रोग कीट के वयस्क और शिशु दोनों ही पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. नवजात कीट अंडों से निकलते ही तीन से चार घंटे के भीतर पत्तियों के सिर के पास से रस चूसना शुरू कर देते हैं, जिससे दाने खराब हो जाते हैं और उनका रंग बदल जाता है. गंभीर संक्रमण के कारण धान की उपज में 50% तक की कमी आ जाती है, और संक्रमित धान का स्वाद इतना खराब हो जाता है कि इसे गाय भी खाना पसंद नहीं करतीं.

कीट की पहचान और समाधान
सुरका रोग के कीटों के अंडे गोल आकार के होते हैं और भूरे रंग के बीज जैसे दिखते हैं. इनकी लंबाई लगभग 2 मिमी होती है, और ये धान की पत्तियों के ऊपरी सतह पर दो पंक्तियों में गुत्थी बनाकर रहते हैं. शुरुआती अवस्था में कीट हल्के भूरे रंग के होते हैं और समय के साथ गहरे हरे रंग में बदल जाते हैं. वयस्क कीट पीले-हरे, लंबे और पतले होते हैं, जिनकी लंबाई आधा इंच से अधिक होती है और इनमें से बदबूदार गंध आती है.

रोग नियंत्रण के उपाय
कृषि अधिकारी अजगल्ले ने सलाह दी है कि सुरका रोग से बचाव के लिए किसानों को कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए. इसके लिए फेथियान 100 ईसी (500 मिली प्रति हेक्टेयर) या मैलाथियान 50 ईसी (500 मिली प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव किया जा सकता है. यह छिड़काव सुबह 9 बजे से पहले या दोपहर 3 बजे के बाद करना अधिक प्रभावी होता है.

इस रोग के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए किसानों को समय पर उचित कदम उठाने की सलाह दी गई है, ताकि उनकी फसल सुरक्षित रहे और पैदावार में कमी न आए.

Tags: Chhattisgarh news, Local18

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