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Noida News : सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) ने नोएडा के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि आवेदक की मृत्यु के बावजूद प्लॉट के आवंटन अधिकार वैध बने रहेंगे और नोएडा प्राधिकरण (NOIDA) द्वारा इस तरह के आवंटन को रद्द करना अवैध है। न्यायालय ने माना है कि कानूनी वारिस को प्लॉट का अधिकार है। यह फैसला स्टीव कनिका बनाम नोएडा प्राधिकरण और अन्य (सिविल अपील संख्या 9815/2024) के मामले में आया। जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने की। पीठ ने अपीलकर्ता स्टीव कनिका को राहत दी। स्टीव कनिका ने नोएडा प्राधिकरण द्वारा अपने मृतक पिता को आवंटित प्लॉट को रद्द करने के निर्णय को चुनौती दी थी।
यह है मामला
मामला नोएडा के सेक्टर-100 में स्थित एक प्लॉट का है। जिसके लिए स्टीव कनिका के पिता ने 2006 में नोएडा की आवंटन योजना के तहत आवेदन किया था। कनिका के पिता को 1 अक्टूबर 2009 को लॉटरी के माध्यम से प्लॉट संख्या 144, ब्लॉक-सी, सेक्टर-100, नोएडा का आवंटन हुआ था। यह प्लाॅट 176.40 वर्गमीटर का था। हालांकि, आवंटन को अंतिम रूप दिए जाने से पहले ही उनके पिता का 8 नवंबर, 2007 को निधन हो गया। प्लॉट का आवंटन पत्र 26 अक्टूबर, 2009 को जारी किया गया। इसके बाद नोएडा प्राधिकरण ने 21 सितंबर 2011 को यह कहते हुए आवंटन रद्द कर दिया कि आवंटन एक मृत व्यक्ति के पक्ष में किया गया था।
नोएडा प्राधिकरण के फैसले को दी चुनौती
प्राधिकरण द्वारा किए गए निरस्तीकरण को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 2011 में रिट दायर की। जिसे 21 अक्टूबर, 2019 को खारिज कर दिया गया। इसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जिसमें तर्क दिया गया कि मृतक आवेदक के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में भूखंड के अधिकार उसके पास चले गए थे। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या मूल आवंटी की मृत्यु ने भूखंड के आवंटन को अमान्य कर दिया या फिर क्या भूखंड के अधिकार कानूनी उत्तराधिकारी को हस्तांतरित हो गए।
अपीलकर्ता का तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया द्वारा प्रस्तुत अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि आवेदन अपीलकर्ता के पिता द्वारा उनकी व्यक्तिगत क्षमता में किया गया था। उनकी मृत्यु के बाद आवंटन के लिए विचार किए जाने का अधिकार कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में अपीलकर्ता को हस्तांतरित हो गया। वकील ने तर्क दिया कि नोएडा द्वारा आवंटन को गलत तरीके से रद्द किया गया था और इस निरस्तीकरण ने कानूनी प्रतिनिधि के रूप में अपीलकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन किया।
नोएडा प्राधिकरण का तर्क
नोएडा प्राधिकरण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल कौशिक ने तर्क दिया कि लॉटरी में सफलता मात्र से आवंटन का अधिकार नहीं मिल जाता। चूंकि जिस व्यक्ति के पक्ष में आवंटन किया गया था, उसकी मृत्यु आवंटन से पहले हो गई थी, इसलिए यह कानूनी रूप से अस्थिर था, और निरस्तीकरण वैध था। नोएडा प्राधिकरण की तरफ से यह भी तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता अपने पिता की मृत्यु के बारे में प्राधिकरण को तुरंत सूचित करने में विफल रहा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता के तर्कों में योग्यता पाई और उसके पक्ष में फैसला सुनाया। न्यायालय ने कहा कि तथ्य यह है कि अपीलकर्ता के पिता ने उचित रूप से आवेदन किया था और आवंटन के लिए सभी पूर्वापेक्षित शर्तों को पूरा कर रहे थे। जिसके बाद लॉटरी निकाली गई और आवंटन पत्र जारी किया गया। निस्संदेह, हालांकि उनके निधन के बाद। हमारे विचार में अपीलकर्ता के पिता की मृत्यु अपीलकर्ता में निहित अधिकार को नकार नहीं सकती।
प्राधिकरण के आचरण और रुख पर उठाए सवाल
न्यायालय ने आगे कहा कि अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत डिमांड ड्राफ्ट को स्वीकार करने और उसे अपने पास रखने तथा आवंटन को तुरंत रद्द करने में विफल रहने के नोएडा प्राधिकरण के आचरण ने नोएडा प्राधिकरण के रुख पर गंभीर संदेह पैदा किया। पीठ ने ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम मंजू जैन (2010) 9 एससीसी 157 में सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले से मौजूदा मामले को अलग करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में अपीलकर्ता ने नोएडा प्राधिकरण को अपने पिता की मृत्यु के बारे में तुरंत सूचित किया था और आवंटन के लिए दायित्वों को पूरा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए थे।