अनूप पासवान/ कोरबा: यह पहाड़ी कोरवा समारिन बाई है. पहाड़ी कोरवा शब्द पढ़ कर यह तो समझ आ गया होगा की इनका वास्ता पहाड़ से है. यह समाज मुख्यतः छत्तीसगढ़ में पाई जाती है जो की जंगल और पहाड़ों पर निवास करते है. इस समाज को मुख्य धारा से जोड़ने प्रयास किया जा रहा है. आर्थिक तंगी से जूझ रही समारिन बाई भी इसी समाज से हैं. कुछ दिन पहले तक इन्हें और इनके गांव को गिनती के कुछ लोग ही जानते थे. घने जंगल के बीच मौजूद इनके गांव का नाम टोकाभांठा हैं. मुख्य सड़क से दूर टोकाभांठा में रहने वाली पहाड़ी कोरवा समारिन बाई का जीवन भी घने जंगल में बसे गांव की तरह गुमनाम सा था. समारिन बाई अब पहले से काफी बदल गई हैं. उनकी जिंदगी और रहन-सहन में बदलाव की शुरुआत हाल ही के दिनों से हुई है.
जिला प्रशासन की पहल पर जब विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग के युवाओं को रोजगार से जोड़ा जा रहा था तब समारिन बाई की शिक्षा भी बहुत काम आई. कक्षा दसवीं तक पढ़ी समारिन बाई को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेमरू में वार्ड आया की नौकरी मिल गई. इससे जंगल में बकरी चराने वाली और गरीबी की वजह से आर्थिक तंगी से जूझने वाली समारिन बाई अस्पताल में अलग रूप में नज़र आ रही है. अब वह ट्रे में दवाइयां लेकर मरीजों के वार्ड तक और डॉक्टर, नर्स के साथ के आसपास काम करती हुई दिखती हैं.
समारिन को लगता था कि पहाड़ी कोरवाओं की जिंदगी गरीबी के बीच जंगल में उनके पुरखों की तरह ही कठिनाइयों के बीच बीतेगी. पहाड़ी कोरवा समारिन बाई का कहना है कि उनका समाज ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है. जंगल में गरीबी के बीच बहुत ही विषम परिस्थितियों में जीवन यापन करना पड़ता है.
उन्होंने जिला प्रशासन द्वारा पहाड़ी कोरवाओं को दी जा रही नौकरी की सराहना करते हुए कहा कि हमारी कड़ुवाहट भरी जिंदगी में नौकरी से मिठास जरूर आयेगी. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के दिशा निर्देशन में कलेक्टर अजीत वसंत ने स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग में जिले के पहाड़ी कोरवाओं तथा बिरहोरों को योग्यता के आधार पर मानदेय में नौकरी पर रखने के निर्देश दिए हैं.
FIRST PUBLISHED : July 23, 2024, 17:19 IST