Last Updated:
होली से एक दिन पहले फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है जो कि बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है. इस दिन होली जलाई जाती है और कहते हैं कि दहन के साथ मनुष्य को कई प्रकार की परेशानियों से भी छुटाकरा …और पढ़ें
होलिका दहन नहीं
हाइलाइट्स
- सलोनी गांव में 100 साल से नहीं होता होलिका दहन.
- महामारी के कारण होलिका दहन की परंपरा बंद की गई.
- रंग और गुलाल से खेली जाती है होली, नगाड़ों पर जश्न मनाया जाता है.
सूर्यकांत यादव/राजनांदगांव. होली से एक दिन पहले फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस दिन होली जलाई जाती है और माना जाता है कि इससे मनुष्य की कई परेशानियां दूर हो जाती हैं. लेकिन, राजनांदगांव जिले के एक गांव सलोनी में होलिका दहन नहीं किया जाता.
सलोनी गांव के ग्रामीणों का कहना है कि उनके दादा-परदादा के जमाने से, यानी लगभग 100 सालों से, यहां होलिका दहन की परंपरा नहीं रही है. इसके बदले, त्योहार में गुलाल से सूखी और गीली होली खेली जाती है और नगाड़ों की धुन पर उमंग से जश्न मनाया जाता है.
100 साल से नहीं होता होलिका दहन
सलोनी गांव, जो जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर है, में कई साल पहले एक घातक महामारी फैल गई थी. इस महामारी में न केवल कई ग्रामीणों की जान गई, बल्कि पशुओं को भी भारी नुकसान हुआ. इससे सबक लेते हुए, गांव के कुछ लोगों ने फैसला किया कि भविष्य में होलिका दहन नहीं किया जाएगा. तब से लेकर आज तक, लगभग 100 सालों से सलोनी गांव में होलिका दहन की परंपरा प्रचलित नहीं है.
गांव पर बड़ी आफत
गांव के ग्रामीण सुमन दास साहू ने बताया कि उनके पूर्वजों का मानना है कि होली जलाने से गांव में आफत आ जाती है, इसलिए होलिका दहन नहीं किया जाता. रंग, गुलाल, नाच-गाने के साथ होली मनाई जाती है, लेकिन होलिका दहन नहीं होता.
रंग और गुलाल से खेली जाती है होली
गांव के एक अन्य ग्रामीण ईशु साहू ने बताया कि सदियों से यह परंपरा चली आ रही है और बुजुर्गों के कहने पर हम भी इसे मानते हैं. अगर होलिका दहन किया जाए तो कुछ अड़चन आ सकती है, इसलिए होलिका दहन नहीं किया जाता. रंग और गुलाल से होली खेली जाती है.
सालों से चली आ रही परंपरा
होलिका दहन की रात सभी लोग एक जगह एकत्र होते हैं. पहले केवल पुरुष ही एकत्र होते थे, अब महिलाएं भी शामिल होती हैं. सभी लोग गांव के कुशलता की कामना करते हैं. दूसरे दिन सुबह से फागुन गीत गाते हैं, एक-दूसरे को गुलाल लगाकर भेंट करते हैं, लेकिन होलिका दहन नहीं किया जाता. सालों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी लोग निभा रहे हैं.
Rajnandgaon,Chhattisgarh
March 12, 2025, 20:49 IST