सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए तमाम प्रयास कर रही है, लेकिन अभी तक ये प्रयास किसानों के लिए नाकाफी साबित हुए हैं। अधिकांश किसान अब भी कर्ज के दलदल में फंसे हुए हैं, उन्हें उनकी मेहनत का पूरा पैसा नहीं मिल रहा। दिन-रात मेहनत करने के बाद भी किसानों के हाथ खाली रह जाते हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार के आगामी बजट को लेकर किसानों को काफी उम्मीदें हैं।
दरअसल, प्रदेश की मोहन यादव सरकार 12 फरवरी को बजट पेश करने वाली है। सीहोर जिले की आबादी में 80 फीसदी किसानों की भागीदारी है। ऐसे में यहां के लोग किसान हितैषी बजट चाहते हैं। केंद्रीय बजट की तरह प्रादेशिक बजट से भी किसानों को कई अपेक्षाएं हैं। बजट से पहले जब किसानों से बातचीत की गई, तो उन्होंने बजट को लेकर अपने विचार रखे।
शरबती गेहूं को मिले 6000 रुपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य
सीहोर का शरबती गेहूं अपनी उच्च गुणवत्ता और सोने जैसे चमकते दानों के कारण देशभर में प्रसिद्ध है। यहां के अधिकांश किसान शरबती गेहूं की खेती करते हैं, लेकिन उन्हें उनकी मेहनत का उचित दाम नहीं मिलता। किसान एमएस मेवाड़ा ने कहा कि सरकार को बजट में शरबती गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 6000 रुपये प्रति क्विंटल घोषित करना चाहिए। इससे अधिक से अधिक किसान शरबती गेहूं की खेती करेंगे और यह फसल लाभदायक साबित होगी। अगर, सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, तो वह दिन दूर नहीं जब शरबती गेहूं का नाम सिर्फ कागजों में ही रह जाएगा। मेवाड़ा बताते हैं कि किसानों की मांगों को लेकर वे कई किसानों के साथ मुख्यमंत्री मोहन यादव से मुलाकात कर हल भेंट कर चुके हैं।
सिंचाई की सुविधा बढ़ाई जाए, स्टॉप डैम और तालाब बनवाए जाएं
किसान राधेश्याम राय और सुनील राय का कहना है कि अभी भी कई किसानों के पास सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। बारिश पर निर्भर रहने के कारण वे अच्छी फसल नहीं ले पाते। सरकार को बजट में स्टॉप डैम और तालाबों के निर्माण के लिए प्रावधान करना चाहिए, जिससे किसानों को सिंचाई की पर्याप्त सुविधा मिल सके। इसके अलावा किसानों के खेतों को सड़कों से जोड़ा जाए।
किसान कैलाश विश्वकर्मा का कहना है कि खेतों के लिए बिजली की आपूर्ति भी सुचारू होनी चाहिए। अभी किसानों को महज आठ घंटे बिजली मिलती है, जिससे वे चाहकर भी समय पर फसलों को पानी नहीं दे पाते। सरकार को बजट में बिजली की आपूर्ति बढ़ाने का प्रावधान करना चाहिए।
फसल बीमा राशि दिलाने का हो प्रावधान
किसान प्रीतम मेवाड़ा, अचल सिंह मेवाड़ा और गोपाल सिंह का कहना है कि मौसम की बेरुखी के कारण सोयाबीन की फसल खराब हो रही है। किसानों से फसल बीमा के नाम पर पैसे तो लिए जाते हैं, लेकिन पिछले पांच वर्षों से बीमा राशि के रूप में उन्हें एक पैसा भी नहीं मिला। किसानों की टमाटर की खेती घाटे का सौदा बन गई है। मंडी में टमाटर 1-2 रुपये किलो बिक रहा है, जिससे लागत भी नहीं निकल रही। यही हाल कई अन्य सब्जियों का भी रहता है। सरकार को बजट में सब्जियों के लिए भी समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए ताकि किसानों को नुकसान न उठाना पड़े।