अनूप पासवान/कोरबाः- एसईसीएल सुभाष ब्लाक स्थित श्री अय्यप्पा (शनिश्वर) मंदिर में मलयाली समाज द्वारा केरल की तर्ज पर नागदेव की सबसे बड़ी पूजा कराई गई. यह पूजा पूरी तरह मलयाली संस्कृति व परंपरा के अनुसार हुई, जिसमें न केवल मलयाली, बल्कि सर्व समाज के लोगों ने शामिल होकर काल सर्प दोष निवारण के लिए अपने-अपने नाम से अनुष्ठान कराया. पूजा विधान क्षेत्र तंत्री ब्रह्मश्री उन्नीकृष्णन नम्बूदिरी के निर्देशन में ब्रह्मश्री महिल्लशेरी रवि नम्बूदिरी के मुख्य कार्मिकत्व में संपन्न कराई गई. पूजा से पूर्व नाग देवता और नाग देवी की पारंपरिक रूप से विशाल रंगोली सजाई गई, जिसके चारों ओर केले के तने और प्रतीकात्मक मशाल ज्योति जलाकर अनुष्ठान शुरू किया गया. यह पूजा डेढ़ घंटे तक चली, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने शामिल होकर श्रद्धा भाव से पूजा किए.
नागदेव के अनुष्ठान के पीछे यह है मान्यता
सर्पबली नाग देवताओं को भोजन कराने का एक प्रतीकात्मक अनुष्ठान है. यह सर्पपाशम और सप्रदादमशनम (सांप के काटने) से बचने के लिए की जाती है. सर्पबली में पांच रंगों पीला, सफेद, लाल, हरा और काला के साथ एक सर्पकलम बनाया जाता है. आमतौर पर सर्पबली के लिए तैयार किए गए कलम में पांच फन वाले नागराजा की छवि होती है, जिन्हें अनुष्ठानिक मंत्रोच्चार के साथ नूरम पलुम अर्पित किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि पूजा समाप्त होने के बाद, नाग देवता प्रसाद खाने कलम में आते हैं.
पांच सीढ़ी को मनुष्य की पांच इंद्रियां
श्री अय्यप्पा मंदिर सेवा समिति के महासचिव सुब्रमणियम के ने बताया कि मान्यता है कि मंदिर की 18 सीढ़ियों में से पहली पांच सीढ़ी को मनुष्य की पांच इंद्रियां कहा जाता है. इसके बाद की आठ सीढ़ी आठ भावनाओं की प्रतीक हैं. अगली तीन सीढ़ियां मानव के तीन गुणों को दर्शाती है. आखिरी दो सीढ़ियां ज्ञान-अज्ञान का प्रतीक हैं.यह भी मान्यता है कि सनातन धर्म के 18 पुराणों, 18 शास्त्रों, 18 सिद्ध पुरुष, 18 देवता और 18 गुण से इन सीढ़ियों को जोड़ा जाता है.
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FIRST PUBLISHED : February 10, 2024, 14:23 IST