सांकेतिक तस्वीर।
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मप्र हाईकोर्ट ने सिंधी जाति को पिछड़ा वर्ग के रूप में घोषित होने पर जारी प्रमात्र पत्र को हाई लेवल कमेटी द्वारा निरस्त किए जाने को गंभीरता से लिया। जस्टिस राजमोहन सिंह की एकलपीठ ने जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने के आदेश पर रोक लगाते हुए मप्र शासन और हाई लेवल कमेटी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। एकलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की है।
उमरिया निवासी जानकी सिंधी की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि भारत के राजपत्र 4 अप्रैल 2000 के अनुसार सिंधी जाति पिछड़ा वर्ग के रूप में घोषित की गई है। सिंधी जाति को मध्य प्रदेश की केंद्रीय सूची में पिछड़ा वर्ग के रूप में घोषित किया गया है। जिस आधार पर अनुविभागीय अधिकारी ने याचिकाकर्ता के पक्ष में पिछड़ा वर्ग का प्रमाण पत्र जारी किया था।
साल 2013 में वह नगर पालिका उमरिया की अध्यक्ष थी, इस दौरान राजनीतिक प्रतिद्वंदी ने हाई लेवल जांच कमेटी पिछड़ा वर्ग के समक्ष उनके जाति प्रमाण-पत्र को लेकर शिकायत की। कमेटी ने शिकायत पर कलेक्टर और एसपी उमरिया से जांच कराई, दोनों अधिकारियों ने अपनी जांच रिपोर्ट में प्रमाण पत्र को सही ठहराया था।
कमेटी ने 21 दिसंबर को सुनवाई निर्धारित की थी, जिसका नोटिस याचिकाकर्ता को 23 दिसंबर को मिला। हाई लेवल कमेटी पिछड़ा वर्ग जाति कल्याण विभाग ने 21 दिसंबर 2023 को सुनवाई का अवसर दिए बिना याचिकाकर्ता के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया। याचिका पर सुनवाई कर एकलपीठ ने उक्त आदेश जारी किए। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पैरवी की।